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बहवृचोपनिषद - विकिपीडिया

बहवृचोपनिषद

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साँचा:हसनपुर

उपनिषद् में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड का आरम्भ स्त्री से हुई है।
शीर्षक का अर्थ ऋग्वेद से परिचित[1]
तिथि 12वीं से 15वीं शताब्दी तक CE[2]
प्रकार शाक्त [3]
सम्बद्ध वेद ऋग्वेद[4]
अध्याय 1
श्लोक 9[5]
दर्शन शाक्त, वेदान्त[6]

बह्वृगुपनिषद् ऋग्वेद शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है परन्तु मुख्यत वेदव्यास जी को कई उपनिषदों का लेखक माना जाता है

उपनिषदों के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। कुछ उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश माना गया है। ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। कुछ उपनिषद ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ ग्रन्थों के अंश माने गये हैं। इनका रचनाकाल संहिताओं के बाद का है। उपनिषदों के काल के विषय मे निश्चित मत नही है समान्यत उपनिषदो का काल रचनाकाल ३००० ईसा पूर्व से ५०० ईसा पूर्व माना गया है। उपनिषदों के काल-निर्णय के लिए निम्न मुख्य तथ्यों को आधार माना गया है—

  1. पुरातत्व एवं भौगोलिक परिस्थितियां
  2. पौराणिक अथवा वैदिक ॠषियों के नाम
  3. सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाओं के समयकाल
  4. उपनिषदों में वर्णित खगोलीय विवरण

निम्न विद्वानों द्वारा विभिन्न उपनिषदों का रचना काल निम्न क्रम में माना गया है[7]-

विभिन्न विद्वानों द्वारा वैदिक या उपनिषद काल के लिये विभिन्न निर्धारित समयावधि
लेखक शुरुवात (BC) समापन (BC) विधि
लोकमान्य तिलक (Winternitz भी इससे सहमत है)

6000

200

खगोलिय विधि
बी. वी. कामेश्वर

2300

2000

खगोलिय विधि
मैक्स मूलर

1000

800

भाषाई विश्लेषण
रनाडे

1200

600

भाषाई विश्लेषण, वैचारिक सिदान्त, etc
राधा कृष्णन

800

600

वैचारिक सिदान्त
मुख्य उपनिषदों का रचनाकाल
डयुसेन (1000 or 800 – 500 BC) रनाडे (1200 – 600 BC) राधा कृष्णन (800 – 600 BC)
अत्यंत प्राचीन उपनिषद गद्य शैली में: बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, कौषीतकि, केन
कविता शैली में: केन, कठ, ईश, श्वेताश्वतर, मुण्डक
बाद के उपनिषद गद्य शैली में: प्रश्न, मैत्री, मांडूक्य
समूह I: बृहदारण्यक, छान्दोग्य
समूह II: ईश, केन
समूह III: ऐतरेय, तैत्तिरीय, कौषीतकि
समूह IV: कठ, मुण्डक, श्वेताश्वतर
समूह V: प्रश्न, मांडूक्य, मैत्राणयी
बुद्ध काल से पूर्व के:' ऐतरेय, कौषीतकि, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, केन
मध्यकालीन: केन (1–3), बृहदारण्यक (IV 8–21), कठ, मांडूक्य
सांख्य एवं योग पर अधारित: मैत्री, श्वेताश्वतर
  1. मोनियर विलियम्स, व्युत्पत्ति के साथ संस्कृत-अंग्रेज़ी शब्दकोश, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस, Bahvṛc पर लेख, पृष्ठ 726
  2. Cush 2007, पृ॰ 740.
  3. Warrier 1967, पृ॰प॰ 73–76.
  4. Tinoco 1996, पृ॰ 88.
  5. Narayanaswami 1999.
  6. Mahadevan 1975, पृ॰प॰ 238–239.
  7. Ranade 1926, pp. 13–14